Mind Corner

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“मन के हारे हार है मन के जीते जीत” अर्थात हम जिस तरह की विचार धारा को धारण करते हैं हमारा जीवन भी उसी के अनुरूप ढल जाता है। मस्तिष्क हमारे शरीर का ही नहीं बल्कि हमारे समस्त जीवन प्रक्रिया का कंट्रोल रूम है। हमारे जीवन की जितनी भी प्रक्रियाओं का सञ्चालन होता है वो मस्तिष्क से ही होता है। मनुष्य का जीवन उसके समस्त विचारधाराओं का ही योगफ़ल है। हमारा मन दो तरीकों से सोचता है। मन या तो नकारात्मक सोचता है या तो सकारात्मक। मन में उत्पन्न ये दो विचार ही हमारे जीवन को या तो सफल बना देते हैं या फिर असफल। यदि आप अपने जीवन और काम के प्रति सकारात्मक नज़रिया रखते हैं और लगातार अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करते हैं, तो जीवन में आने वाली सभी चुनौतियों का ना सिर्फ़ आसानी से सामना कर पाएंगे बल्कि सभी समस्याओं को आप जीत भी जायेंगे। अर्थात जीवन में सफल हो जायेंगे। लेकिन यदि आपने मन में नकारात्मक नज़रिया को जगह दे दिया तो समझो जिन्दगी का बेड़ा गर्क होना तय है। ग्रोथ माइंडसेट एक ऐसा मन:स्तिथि है जो हमारे सकारात्मक सोच को परिलक्षित करता है, इसी सोच का सकारात्मक नज़रिया हमें दूसरों से अलग बनाता है। हमें दूसरे लोगों के जीवनशैली का अंधाधुंध नक़ल नहीं करना चाहिए बल्कि उनकी जीवनशैली से उनके माइंडसेट को परख़ना चाहिए। हमें लोगों के विचारधाराओं से केवल उनके सकारात्मक पहलु को अपनाना चाहिए और नकारात्मक पहलु को इग्नोर कर देना चाहिए। नकारात्मक नज़रिया यानि मन से हार मान लेना। हम किसी के जीवनशैली या उनके विचारधाराओं को जबरजस्ती तो नहीं बदल सकते इसलिए अच्छा है कि अपने को ही साइडलाइन कर दें। दूसरों की सकारात्मकता और नकारात्मकता को अपने विवेक रूपी छननी से छान लेना चाहिए। अर्ल नाइटिंगल ने कहा था कि “मनुष्य अपने समस्त सोच का ही औसत होता है।” यानि हम जैसा सोचते है हमारा जीवन भी उसी सोच के अनुरूप ढल जाता है। मन (इरादा) नकारात्मक होने से हम ख़ुद तो नेगेटिव होते ही हैं, हम औरों में भी हमेशा नेगेटिविटी ही ढूंढते हैं। ऐसा करने से हम अपने साथ समाज में भी नेगेटिविटी का ज़हर फैलाने के दोषी होते हैं। लेकिन, ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ़ हम ही दोषी होते हैं बल्कि, हमारे चारों तरफ़ यानि ज्यादातर पड़ोसी भी ऐसे लोग होते हैं। इसलिए अपने पड़ोसियों के साथ भी देख-परख़ कर दोस्ती करनी चाहिए। हमारी आदत होती है कि हम बिना सोचे समझे ही पड़ोसियों की नक़ल करने लग जाते हैं। ये नहीं सोचते कि पड़ोसी सही कर रहा है या ग़लत। इसलिए हमेशा सकारात्मक सोच के साथ निर्णय लें। मन को मज़बूत बनायें। इरादा पक्का रखें। और जो भी करें अच्छा करें और नेक इरादे से करें। कुछ करें नहीं, बल्कि बहुत कुछ करके दिखा दें। वैसे तो सीखने की कोई उम्र नहीं होती। फिर भी अपने अर्ली एज में ही ज़्यादा से ज़्यादा जानकारियाँ हासिल कर लें बेहतर से बेहतर स्किल्स सीख़ लें। आज ही शुरू करें, डॉंट माइंड कि “पता नहीं लोग क्या सोचेंगे या क्या कहेंगे।”  बस याद रखें “मन के जीते जीत है……….

 

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